Mumbai High Court | हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गड्ढों से होने वाली मौतों पर सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाएगा, पीड़ित परिवारों को जिला विधि सेवा प्राधिकरण देगा पूरा सहयोग
पुणे: Mumbai High Court | बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और संदेश डी. पाटिल की खंडपीठ ने 13 अक्टूबर 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो नागरिकों के जीवन और सुरक्षा के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 21) की रक्षा को और मजबूत बनाता है।
इस फैसले के तहत, गड्ढों या असुरक्षित सड़कों के कारण होने वाली मौतों और दुर्घटनाओं पर सरकार और संबंधित विभागों की जवाबदेही तय की जाएगी।
जिला विधि सेवा प्राधिकरण (DLSA) की सचिव सोनल पाटिल ने कहा कि, “खड्डों या असुरक्षित सड़कों से जुड़े हादसों के पीड़ित परिवारों को DLSA की ओर से संपूर्ण कानूनी सहायता और मुआवज़ा दिलाने में सहयोग दिया जाएगा।”
फैसले की मुख्य बातें:
मुआवज़ा राशि:
गड्ढों से हुई मौत पर ₹6 लाख का मुआवज़ा मृतक के परिजनों को मिलेगा।
घायल व्यक्ति को ₹50,000 से ₹2.5 लाख तक का मुआवज़ा उसकी चोट की गंभीरता के अनुसार दिया जाएगा।
दावा दर्ज होने के 6 से 8 सप्ताह के भीतर मुआवज़ा भुगतान किया जाना आवश्यक होगा।
शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया:
कोई भी नागरिक संबंधित नगर निगम, PWD, या राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के ऑनलाइन पोर्टल / हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कर सकता है।
साथ ही, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) में भी सीधे आवेदन देकर कानूनी सहायता प्राप्त की जा सकती है।
जिम्मेदार अधिकारी:
शहरी क्षेत्र में – नगरपालिका, नगर परिषद, MSRDC, PWD, और NHAI अधिकारी जिम्मेदार होंगे।
ग्रामीण क्षेत्र में – जिला परिषद और ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी जवाबदेह रहेंगे।
कार्रवाई और जवाबदेही:
हर शिकायत का 48 घंटे के भीतर निपटारा होना चाहिए।
दोषी अधिकारी, इंजीनियर या ठेकेदार के खिलाफ विभागीय कार्रवाई और फौजदारी मुकदमा चलाया जाएगा।
समय पर कार्रवाई या मुआवज़ा न देने पर संबंधित आयुक्त, जिलाधिकारी या विभाग प्रमुख व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे।
सहायता हेतु संपर्क:
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला न्यायालय परिसर, नई इमारत, शिवाजीनगर, पुणे
020-25534881 | 8591903612
सोनल पाटिल (सदस्य, DLSA) का बयान:
“पीड़ित परिवार साधे कागज़ पर आवेदन, मेडिकल रिपोर्ट और पुलिस शिकायत की प्रति संलग्न कर दावा प्रस्तुत कर सकते हैं।
हमारा उद्देश्य है कि प्रत्येक पीड़ित परिवार को न्याय, मुआवज़ा और नि:शुल्क कानूनी सहायता समय पर मिले।”
